जब सपने भी जल जाते है,
और अपने भी छल जाते है,
सच तुम बहुत याद आती हो,
जब खुद पे ही चिल्लाता हूँ,
कुछ लिखने से घबराता हूँ,
सच तुम बहुत याद आती हो,
जब हालात से खौफ खाता हूँ,
एक कदम बढने से घबराता हूँ,
सच तुम बहुत याद आती हो,
जब कभी सफलता पाता हूँ,
और कभी कभी मुस्काता हूँ,
सच तुम बहुत याद आती हो,
जब रात को तन्हा होता हूँ,
यादों से घिर कर रोता हूँ,
सच तुम बहुत याद आती हो,
Friday, October 22, 2010
Sunday, June 13, 2010
मगर शायद
किस तरह तुमने मुझे भुलाया होगा,
ये सलीका भी हमने तुम्हे सिखाया होगा,
कभी तो दस्तक दी होगी याद ने मेरे,
कभी मेरे अक्स ने तुम्हे रुलाया तो होगा,
एक उम्र रतजगे में काटी है हमने,
तुम्हे चांदनी ने थपकियों से सुलाया तो होगा,
एक अरसा गुजारी इसी आसरे में,
कभी हमारा प्यार याद आया तो होगा,
ये सलीका भी हमने तुम्हे सिखाया होगा,
कभी तो दस्तक दी होगी याद ने मेरे,
कभी मेरे अक्स ने तुम्हे रुलाया तो होगा,
एक उम्र रतजगे में काटी है हमने,
तुम्हे चांदनी ने थपकियों से सुलाया तो होगा,
एक अरसा गुजारी इसी आसरे में,
कभी हमारा प्यार याद आया तो होगा,
Saturday, May 29, 2010
उन्स...
वो कहाँ लौट कर वापस आया था,
हमने जिसको अपना खुदा बनाया था,
सुर्ख आँखों को पता है नींद की कीमत,
पिछली बार तुमने ही मुझे सुलाया था,
तुम्ही ना समझ सके कभी हमारे प्यार को,
हमने कई बार आँखों से तुम्हे बताया था,
दिल में एक टीस तेरे जाने से थी,
ये दर्द भी सीने में हमने छुपाया था,
तेरी यादों की लुत्फ़ की क्या है बात,
तेरी फुरकत को भी सीने से हमने लगाया था,
हमने जिसको अपना खुदा बनाया था,
सुर्ख आँखों को पता है नींद की कीमत,
पिछली बार तुमने ही मुझे सुलाया था,
तुम्ही ना समझ सके कभी हमारे प्यार को,
हमने कई बार आँखों से तुम्हे बताया था,
दिल में एक टीस तेरे जाने से थी,
ये दर्द भी सीने में हमने छुपाया था,
तेरी यादों की लुत्फ़ की क्या है बात,
तेरी फुरकत को भी सीने से हमने लगाया था,
Tuesday, April 27, 2010
एक रुकी हुई रात...
घंटो शायद पहरों,
एक रुकी हुई रात,
हर रोज आती है,
हर रोज एक ही बात्तें,
एक जैसी चीजे हर रोज,
ऑफिस, ऑटो, फ़ोन,मैं,
सड़क की चीजे,जाने क्या-क्या,
एक ही तरह के सवाल,
और उनका एक ही जवाब,
कुछ नयापन तलाशने की,
न कोई आस न कभी प्रयास,
अनगिनत पल एक जैसे ही,
और इन पलो में बीतता मैं,
हर लम्हा तुम्हारी याद के साथ,
आज भी तुम्हारे इंतज़ार में,
इसी रुकी हुई रात की तरह,
ठहरा हुआ, वहीँ पड़ा हुआ,
मैं तुम्हारे इंतजार में.....
एक रुकी हुई रात,
हर रोज आती है,
हर रोज एक ही बात्तें,
एक जैसी चीजे हर रोज,
ऑफिस, ऑटो, फ़ोन,मैं,
सड़क की चीजे,जाने क्या-क्या,
एक ही तरह के सवाल,
और उनका एक ही जवाब,
कुछ नयापन तलाशने की,
न कोई आस न कभी प्रयास,
अनगिनत पल एक जैसे ही,
और इन पलो में बीतता मैं,
हर लम्हा तुम्हारी याद के साथ,
आज भी तुम्हारे इंतज़ार में,
इसी रुकी हुई रात की तरह,
ठहरा हुआ, वहीँ पड़ा हुआ,
मैं तुम्हारे इंतजार में.....
Sunday, April 4, 2010
दिल ने जब.....
दिल ने जब भी धोखा खाया है,
सच कहूँ तू बहुत याद आया है,
सच है हार गया मैं मोहब्बत की जंग,
मगर कुछ देर के लिए तेरा साथ तो पाया है,
तुम खुश हो कहीं और मेरे बगैर भी,
दूर होकर भी ये सौगात मैंने पाया है,
बात तेरी लाचारियो की नहीं,बेवफाई की है,
खैर जाते जाते भी प्यार तुने सिखाया है,
चाहे हँसते हुए लब हो या अश्कबार आँखें,
हर शै में दर्द तेरा ही छुपाया है,
सच कहूँ तू बहुत याद आया है,
सच है हार गया मैं मोहब्बत की जंग,
मगर कुछ देर के लिए तेरा साथ तो पाया है,
तुम खुश हो कहीं और मेरे बगैर भी,
दूर होकर भी ये सौगात मैंने पाया है,
बात तेरी लाचारियो की नहीं,बेवफाई की है,
खैर जाते जाते भी प्यार तुने सिखाया है,
चाहे हँसते हुए लब हो या अश्कबार आँखें,
हर शै में दर्द तेरा ही छुपाया है,
Sunday, March 14, 2010
हसरत..
तुम जो मिल जाते तो सँवर जाता,
बिन तेरे जाने अब किधर जाता,
तुमने रखा था पिरोकर मुझे मुझमे,
वरना कबका मैं टूटकर बिखर जाता,
एक अरसा हुआ दिल के टीस को,
तेरी छुवन से ये घाव भी भर जाता,
लौटता हूँ हर दिन अपने कमरे पे,
तुम जो होती तो लौट कर अपने घर जाता,
गर्दिशो की मार में मैं रोज ही डूबा रहा,
तुम जो साथ आते तो शायद पार कर जाता,
बिन तेरे जाने अब किधर जाता,
तुमने रखा था पिरोकर मुझे मुझमे,
वरना कबका मैं टूटकर बिखर जाता,
एक अरसा हुआ दिल के टीस को,
तेरी छुवन से ये घाव भी भर जाता,
लौटता हूँ हर दिन अपने कमरे पे,
तुम जो होती तो लौट कर अपने घर जाता,
गर्दिशो की मार में मैं रोज ही डूबा रहा,
तुम जो साथ आते तो शायद पार कर जाता,
Saturday, February 20, 2010
तुम्ही ही तो साथ होते थे......
होंटों के कम्पन में
ह्रदय के क्रंदन मे,
अवर्निये कष्ट मे,
घोर अनिष्ट मे,
आत्मंवेसर्ण मे,
अकक सम्प्रेसंर्ण मे,
मलिंतायो से निकलते हुए,
अग्निपथ पे चलते हुए,
अगणित रतजगो में,
तुम ही तो साथ होते थे.....
ह्रदय के क्रंदन मे,
अवर्निये कष्ट मे,
घोर अनिष्ट मे,
आत्मंवेसर्ण मे,
अकक सम्प्रेसंर्ण मे,
मलिंतायो से निकलते हुए,
अग्निपथ पे चलते हुए,
अगणित रतजगो में,
तुम ही तो साथ होते थे.....
Friday, January 8, 2010
क्या समझू मैं.....................
तेरे मेरे बीच की चाहत,
एक हकीकत थी या कोई ख्वाब,
ये रिश्ता भी खुदा -शाज था,
या फिर बनाया था हमने सोचकर,
जिस राह पे तेरा हाथ थामे,
मैं चला था सबकुछ छोड़कर,
उसकी कोई मंजिल थी,
या फिर यूँ ही समय की बर्बादी,
तुमसे मिली जो कोमल खुशियाँ,
उसपर करू विश्वास या न करू कोई आस,
जो खवाब तेरे साथ देखे,
क्या कभी पुरे होंगे या टूटेंगे हमेशा की तरह,
क्या समझू मैं............
एक हकीकत थी या कोई ख्वाब,
ये रिश्ता भी खुदा -शाज था,
या फिर बनाया था हमने सोचकर,
जिस राह पे तेरा हाथ थामे,
मैं चला था सबकुछ छोड़कर,
उसकी कोई मंजिल थी,
या फिर यूँ ही समय की बर्बादी,
तुमसे मिली जो कोमल खुशियाँ,
उसपर करू विश्वास या न करू कोई आस,
जो खवाब तेरे साथ देखे,
क्या कभी पुरे होंगे या टूटेंगे हमेशा की तरह,
क्या समझू मैं............
Saturday, January 2, 2010
एक सच....
भला कहाँ तक उसे मेरे साथ चलना था,
की एक दिन तो उसे रास्ता बदलना था,
मेरे पैरो को तो यायावरी का श्राप मिला,
और उसके भाग्य में किसी मोड़ पे ठहरना था,
मैं भी कहाँ अटल रहा अपनी बात पर,
सो उसको भी तो अपनी बात से मुकरना था,
एक तेरे नाम पर अनेक स्वर मुखर हुए,
इतना तो मेरी बात में पहले असर न था,
अब लोग कहते है,ये है तेरा कर्मफल,
तेरे नसीब में इस हाल से गुजरना था,
की एक दिन तो उसे रास्ता बदलना था,
मेरे पैरो को तो यायावरी का श्राप मिला,
और उसके भाग्य में किसी मोड़ पे ठहरना था,
मैं भी कहाँ अटल रहा अपनी बात पर,
सो उसको भी तो अपनी बात से मुकरना था,
एक तेरे नाम पर अनेक स्वर मुखर हुए,
इतना तो मेरी बात में पहले असर न था,
अब लोग कहते है,ये है तेरा कर्मफल,
तेरे नसीब में इस हाल से गुजरना था,
Friday, December 25, 2009
शाम है..........
शाम है, तन्हाई को गले लगाना है,
जाने मेरे घर में अभी, किस किस को आना है,
क्या मुसीबत है जान हम दोनों के लिए,
बिन मिले एक दूसरे से मिलके आना है,
उम्र सारी तेरी चाहत के नाम कर देते,
मगर कुछ लम्हें तो अपने लिए बचाना है,
राह काँटों भरी मेरी है लेकिन,
इस राह से ही आपको भी घर जाना है,
जाने मेरे घर में अभी, किस किस को आना है,
क्या मुसीबत है जान हम दोनों के लिए,
बिन मिले एक दूसरे से मिलके आना है,
उम्र सारी तेरी चाहत के नाम कर देते,
मगर कुछ लम्हें तो अपने लिए बचाना है,
राह काँटों भरी मेरी है लेकिन,
इस राह से ही आपको भी घर जाना है,
Sunday, December 20, 2009
मुझमे कुछ.................
मुझमे कुछ मर गया है शायद,
वो अपना काम कर गया है शायद,
गर्द-ओ-गुबार बैठने लगे है फिर,
वक़्त हँस के गुजर गया है शायद,
चले तो दोनों साथ ही थे,
वो किसी मरहले पर ठहर गया है शायद,
आज ख़त कोरा ही वापस आया,
खौफ-ए-रुसवाई से डर गया है शायद,
सुना है उसने फिर किया है याद मुझको,
एक और "दिल" से जी भर गया है शायद,
वो अपना काम कर गया है शायद,
गर्द-ओ-गुबार बैठने लगे है फिर,
वक़्त हँस के गुजर गया है शायद,
चले तो दोनों साथ ही थे,
वो किसी मरहले पर ठहर गया है शायद,
आज ख़त कोरा ही वापस आया,
खौफ-ए-रुसवाई से डर गया है शायद,
सुना है उसने फिर किया है याद मुझको,
एक और "दिल" से जी भर गया है शायद,
Sunday, November 8, 2009
फिर नाकामी...........
तेरी गलियों से फिर नाकाम लौटा,
जैसे बिन मिले जरुरी पैगाम लौटा,
तेरी दीद को तरसती आबशार लेकर,
फिर तेरे दर से बदनाम लौटा,
कोई पूछने वाला न दिख सका मुझको,
की तुमको दिल में लिए गुमनाम लौटा,
सुबह से ही खाक छानी तेरी यादों की,
घर से निकला तो शर - ऐ-शाम लौटा,
कई दिन हुए खुदा को याद किए हुए,
जब याद आई तो मेरा अजान लौटा,
जैसे बिन मिले जरुरी पैगाम लौटा,
तेरी दीद को तरसती आबशार लेकर,
फिर तेरे दर से बदनाम लौटा,
कोई पूछने वाला न दिख सका मुझको,
की तुमको दिल में लिए गुमनाम लौटा,
सुबह से ही खाक छानी तेरी यादों की,
घर से निकला तो शर - ऐ-शाम लौटा,
कई दिन हुए खुदा को याद किए हुए,
जब याद आई तो मेरा अजान लौटा,
तेरे शहर से कुछ लेकर लौटा हूँ.........
तेरे शहर से कुछ लेकर लौटा हूँ,
कुछ पुरानी यादें, अधूरे वादे,
कुछ उलझे सवाल, तेरा ख्याल,
तूझे कभी न पाने की कसक,
तेरे हाँथों की नई मेहँदी की महक,
कुछ जगहों पे तेरे कदमो का अहसास,
मेरे लबो पे तेरे होंटों की मिठास,
मेरे दिल की तरह टूटा, अँगूठी का टुकड़ा,
लाखो गम छुपाये तेरा मुस्कुराता मुखड़ा,
दूर से हाथ हिलाता तेरा धुँधला सा अक्स,
बेपलक ताकता मेरे भीतर का वो शख्स,
सबकुछ हाँ सभी ले आया हूँ,
जानती हो इस दफा खाली हाँथ नहीं लौटा,
कुछ पुरानी यादें, अधूरे वादे,
कुछ उलझे सवाल, तेरा ख्याल,
तूझे कभी न पाने की कसक,
तेरे हाँथों की नई मेहँदी की महक,
कुछ जगहों पे तेरे कदमो का अहसास,
मेरे लबो पे तेरे होंटों की मिठास,
मेरे दिल की तरह टूटा, अँगूठी का टुकड़ा,
लाखो गम छुपाये तेरा मुस्कुराता मुखड़ा,
दूर से हाथ हिलाता तेरा धुँधला सा अक्स,
बेपलक ताकता मेरे भीतर का वो शख्स,
सबकुछ हाँ सभी ले आया हूँ,
जानती हो इस दफा खाली हाँथ नहीं लौटा,
Friday, October 9, 2009
खलिश...
एक उम्र बसर सर-ए- राह की हमने,
तेरे बगैर यूँ भी निबाह की हमने,
वो हँस रहे हैं देख कर धार-ए-नश्तर,
भेज लानत की अगर एक आह की हमने,
उसी समय से आवारगी की बाम चढ़े,
कि जिस दिन से तेरी चाह की हमने,
कोई साथी नही मेरे शब्-ए-तन्हाई का,
कि आंसुओं से तेरे बाद निकाह कि हमने,
तेरे बगैर यूँ भी निबाह की हमने,
वो हँस रहे हैं देख कर धार-ए-नश्तर,
भेज लानत की अगर एक आह की हमने,
उसी समय से आवारगी की बाम चढ़े,
कि जिस दिन से तेरी चाह की हमने,
कोई साथी नही मेरे शब्-ए-तन्हाई का,
कि आंसुओं से तेरे बाद निकाह कि हमने,
Saturday, October 3, 2009
कुछ ऐसे ही....
कभी तेरे बात की खुशी,
कभी तेरे साथ की खुशी,
अब तू खुश है कहीं.......मुझे इस बात की खुशी,
कभी तेरे साथ की खुशी,
अब तू खुश है कहीं.......मुझे इस बात की खुशी,
Friday, October 2, 2009
नाकाम कोशिश........
देख ली सारी कोशिशे करके,
कोई तो तौर बता,तुझको भूल जाने का,
थोड़ा खून बेचते है,थोड़ी खुशी,
ये मेरा सलीका,ज़िन्दगी बिताने का,
तेरी याद,तेरी जुस्तजू, तेरी तमन्ना,
ये लाल-ओ-गुहार मेरे खजाने का,
मिट चुके होते शायद कभी के,
अगर न होता इंतज़ार तेरे आने का,
लाल-ओ-गुहार -हीरा-मोती
Saturday, September 26, 2009
सवाल..............
मेरी चाह मे तो कमी रही,
तेरी आँख मैं क्योँ नमी रही,
ता उम्र मैं रहा बदनाम तेरे नाम से,
तेरी खलुष मे फिर क्यूँ कमी रही,
तेरे तशव्वूर मे मेरा ख्याल भी नही,
तेरी याद मेरी जीस्त की दायामी रही,
तुमसे गले लगे सद्दियाँ गुजर गई,
तेरी जुल्फ मे आज कैसी बरहमी रही,
तुम्हारी ज़िन्दगी मे बहुत मुमकिन है खुशियाँ हो,
हमारी ज़िन्दगी मे खैर वही मातमी रही,
खलुष- खुशी
जीस्त- ज़िन्दगी,
बरहमी- उलझा हुआ
Sunday, September 20, 2009
एहसास...
जगह वो अब भी है मेरे जेहन में,
जहा गुजरे थे वक्त तेरे प्यार में,
परी चेहरा जो कभी था हमारा,
अब वो भी नही हमारे इख्तियार में,
जहाँ से मुड गई थी अपनी राहें,
वहीँ खड़ा मैं तेरे इंतज़ार में,
ना तू, ना वक्त,ना दुनिया, ना मिजाज,
बचा कुछ भी नही मेरे आबशार में,
बहुत भटका हूँ,जुस्तजू में तेरी,
निशाँ पाँव के मिलेंगे कू -ए- यार में,
आबशार- आँख
जुस्तजू- तलाश
जहा गुजरे थे वक्त तेरे प्यार में,
परी चेहरा जो कभी था हमारा,
अब वो भी नही हमारे इख्तियार में,
जहाँ से मुड गई थी अपनी राहें,
वहीँ खड़ा मैं तेरे इंतज़ार में,
ना तू, ना वक्त,ना दुनिया, ना मिजाज,
बचा कुछ भी नही मेरे आबशार में,
बहुत भटका हूँ,जुस्तजू में तेरी,
निशाँ पाँव के मिलेंगे कू -ए- यार में,
आबशार- आँख
जुस्तजू- तलाश
Wednesday, September 16, 2009
तलाश.....
Tuesday, September 15, 2009
मेरी चाह......
Sunday, September 13, 2009
दर्द....
जो गलती की नही मैंने, वो मुझको क्यूँ सुनाते हैं,
सारी बात का दोषी मुझे ही क्यूँ बताते हैं,
जो उनकी बात सुनता हूँ, तो आंखों पर बिठाते है,
जो अपनी बात कहता हूँ, तो आंखों से गिराते हैं,
जो पट्टी बाँध लेता हूँ, तो सब रास्ता दिखाते हैं,
मगर जब खोल लेता हूँ, तो अपनी रह जाते हैं,
मुझे क्या हो गया है बस यही चिंता जताते है,
समझता नही है मुझे कोई,बस सब समझाते है,
मैं जब भी साथ होता हूँ, मुझे अपना बताते हैं,
मगर जब भी हुआ तनहा अकेला छोड़ जाते है,
बेखुदी......
मैं तुम्हारे साथ एक नामालूम सफर पर हूँ,
लब खामोश और सब खामोश हैं,
मगर बोल रही हमारी निगाहें,
जिसने आज तक कुर्बत नही देखी,
तुम मेरी बाँहों मैं सिमट रही हो,
मेरी रूह तुममे पिघल रही है,
की तभी एक आहट सी होती है,
और तुम चौंक जाती हो,
की अचानक याद आता है की,
हम तनहा नही है,
सही है अक्सर होश ही ,
तन्हाई लाती है....................हम बेहोश ही कितने अच्छे थे जान
मेरी तुम.....
ये रिश्ता......
तुम कौन हो मैं नही जानता,
तुम कहाँ से आए कहाँ मालूम,
हाँ मगर कुछ बात हैं तुममे
की जब भी साँस लेता हूँ
तुम्हे महसूस करता हूँ,
की हर लम्हे मैं तुम्हे ही देखता हूँ,
की हर पल मैं तुम्हे ही मांगता हूँ,
एक अनकहा रिश्ता है तुमसे मेरा,
जिसे एक नाम देना है मुझे,
जो दुनिया की समझ से परे है,
मगर तुम जानते हो हमारे रिश्ते का नाम,
नही वो तो दुनिया से ही परे है.................................
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